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बिहार की ग्रामीण महिलाएं अब सशक्तिकरण की नई इबारत लिख रही हैं। जिन हाथों में कभी सिर्फ घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी थी, अब वही हाथ बाजार में खादी उत्पादों की पहचान बन गए हैं। सरकार द्वारा चलाए जा रहे खादी प्रशिक्षण केंद्र इन महिलाओं को न सिर्फ हुनरमंद बना रहे हैं, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और सामाजिक रूप से सम्मानित भी कर रहे हैं।

घरों से निकलकर हुनर ने पकड़ी उड़ान

पहले जिन कार्यों को केवल घरेलू जरूरतों तक सीमित समझा जाता था—जैसे सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, अगरबत्ती, साबुन और डिटर्जेंट पाउडर निर्माण—अब वही काम महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बना रहे हैं। खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग द्वारा संचालित इन प्रशिक्षण केंद्रों में महिलाओं को आधुनिक तकनीकी शिक्षा और प्रायोगिक जानकारी दी जा रही है।

ये प्रशिक्षण न केवल उत्पादन की तकनीक सिखाते हैं, बल्कि फैब्रिक की गुणवत्ता, डिज़ाइनिंग के ट्रेंड्स और बाज़ार की मांग को समझने की भी पूरी व्यवस्था की गई है, जिससे महिलाएं अपने उत्पादों को बाजार में प्रतिस्पर्धी रूप में पेश कर सकें।

कार्य के अनुसार तय प्रशिक्षण अवधि

महिलाओं की सुविधा और कार्य की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, प्रशिक्षण की अवधि भी अलग-अलग रखी गई है:

सिलाई और बुनाई – 3 महीने

अगरबत्ती और डिटर्जेंट निर्माण – 1 महीना

यह योजनाबद्ध तरीके से तैयार किया गया कार्यक्रम उन्हें तुरंत कौशल दिलाने और व्यवसाय शुरू करने में सक्षम बनाता है।

उपलब्धियां: प्रशिक्षण से आत्मनिर्भरता तक

वित्तीय वर्ष 2024-25 में पूरे राज्य में 59 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें 950 महिलाएं और 550 पुरुष लाभान्वित हुए। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, कई महिलाएं खादी संस्थानों से जुड़कर नियमित आय कमा रही हैं, जबकि कई अन्य ने अपना खुद का लघु व्यवसाय शुरू किया है।

यह बदलाव न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बना रहा है, बल्कि उनके आत्म-सम्मान और सामाजिक स्थिति में भी स्पष्ट बदलाव ला रहा है। अब गांवों की महिलाएं अपने हुनर से घर के साथ-साथ समाज और राज्य की आर्थिक स्थिति में भी योगदान दे रही हैं।

उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा की पहल

इस पूरे अभियान के पीछे उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा की दूरदृष्टि और प्रतिबद्धता प्रमुख रही है। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि हर प्रमंडल में खादी मॉल स्थापित किए जाएं, जिससे ग्रामीण उत्पादों को एक स्थायी और बड़ा बाजार मिल सके। इसके साथ ही, इन उत्पादों को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जोड़ने की योजना भी है, ताकि ये महिलाएं ऑनलाइन व्यापार की मुख्यधारा से जुड़ सकें।”

उनकी यह सोच “खादी फॉर फैशन, खादी फॉर नेशन और खादी फॉर ट्रांसफॉर्मेशन” जैसे आदर्शों पर आधारित है, जो न केवल खादी को आधुनिकता से जोड़ती है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करती है।

आर्थिक परिवर्तन के साथ सामाजिक बदलाव

इस योजना से महिलाओं की आर्थिक स्थिति में जबरदस्त सुधार आया है, और इसके साथ ही उनका सामाजिक स्तर भी ऊपर उठा है। परिवारों में उनकी भूमिका अब केवल सीमित नहीं रही, वे निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी शामिल हो रही हैं। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए रास्ते खुलने लगे हैं।

यह पहल साबित करती है कि यदि सही प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और संसाधन मिल जाएं, तो गांव की महिलाएं भी ‘रोज़गार प्रदाता’ बन सकती हैं, केवल ‘रोज़गार चाहने वाली’ नहीं।