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  • नई दिल्ली। वर्ष 2025 में कर्क संक्रांति का पावन अवसर 16 जुलाई, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य देव, जो नवग्रहों में सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं, अपनी चाल बदलकर मिथुन से कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। यही राशि परिवर्तन कर्क संक्रांति कहलाता है। धार्मिक दृष्टि से यह क्षण अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।
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  • कर्क संक्रांति से ही सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन हो जाते हैं, और इसी के साथ शुरू होती है देवताओं की रात। यह समय धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस अवधि में शुभ कार्यों पर अस्थायी विराम लगता है।
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  • कर्क संक्रांति 2025: तारीख और समय
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  • तिथि: बुधवार, 16 जुलाई 2025
  • सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश: शाम 05:40 बजे
  • संक्रांति का विशेष क्षण: सूर्य प्रवेश का यही समय संक्रांति का मुख्य क्षण होता है।
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  • महा पुण्यकाल और सामान्य पुण्यकाल
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  • महा पुण्यकाल (2 घंटे 18 मिनट)
  • आरंभ: दोपहर 03:22 बजे
  • समापन: शाम 05:40 बजे
  • इस अवधि को स्नान, दान और सूर्य पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस समय किए गए पुण्यकर्म हजार गुना फल देते हैं।
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  • सामान्य पुण्यकाल (12 घंटे)
  • प्रारंभ: सुबह 05:40 बजे
  • अंत: शाम 05:40 बजे
  • जो लोग महा पुण्यकाल में नहीं कर सकते, वे सामान्य पुण्यकाल में भी स्नान-दान और सूर्य पूजन कर सकते हैं।
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  • रवि योग और शोभन योग का संयोग
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  • इस वर्ष की कर्क संक्रांति पर रवि योग और शोभन योग दोनों बन रहे हैं:
  • शोभन योग: सुबह 05:40 बजे से दोपहर 11:57 बजे तक
  • रवि योग: 16 जुलाई सुबह 05:46 बजे से 17 जुलाई सुबह 04:50 बजे तक
  • रवि योग को अत्यंत शुभ माना जाता है। इस योग में सूर्य देव की आराधना विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। कहा जाता है कि इस दिन सूर्य की पूजा करने से कुंडली का सूर्य दोष भी शांत होता है।
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  • कर्क संक्रांति से शुरू होती है देवताओं की रात
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  • हिंदू शास्त्रों के अनुसार, एक वर्ष में देवताओं के दिन और रात के समय भी बदलते हैं।
  • उत्तरायण (मकर से कर्क तक) = देवताओं का दिन
  • दक्षिणायन (कर्क से मकर तक) = देवताओं की रात
  • 16 जुलाई को जब सूर्य दक्षिण की ओर रुख करते हैं, तभी से देवता विश्राम अवस्था में चले जाते हैं। इस काल को दक्षिणायन कहते हैं, और यह मकर संक्रांति तक चलता है।
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  • दक्षिणायन में क्यों नहीं होते शुभ कार्य?
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  • अग्नि पुराण में वर्णित है कि कर्क संक्रांति से लेकर मकर संक्रांति तक देवता शयन अवस्था में रहते हैं। इस कारण:
  • विवाह
  • गृह प्रवेश
  • मुहूर्त आदि शुभ कार्य
    टाल दिए जाते हैं।
  • यह मान्यता है कि देवता जब विश्राम में होते हैं, तब कोई भी मांगलिक कार्य फलदायी नहीं होता।
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  • कर्क संक्रांति का धार्मिक महत्व
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  • कर्क संक्रांति को दान और स्नान का पर्व कहा जाता है। इस दिन धार्मिक रूप से कुछ विशेष कार्य करने से कई गुना पुण्य प्राप्त होता है:
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  • क्या करें इस दिन?
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  • सूर्य को अर्घ्य दें – तांबे के पात्र में जल, लाल फूल, अक्षत और रोली मिलाकर अर्घ्य देना शुभ होता है।
  • स्नान करें पवित्र नदी में – या घर पर स्नान करके गंगा जल मिलाएं।
  • दान करें – अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़, जल, छाता, चप्पल आदि।
  • सूर्य मंत्रों का जाप करें – “ॐ घृणिः सूर्याय नमः”
  • आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें – यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाता है।
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  • कर्क संक्रांति: स्वास्थ्य और आध्यात्म का मेल
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  • कहा जाता है कि इस दिन सूर्य की ऊर्जा विशेष रूप से प्रभावी होती है। इस वजह से:
  • सूर्य पूजा से स्वास्थ्य अच्छा रहता है
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है
  • दीर्घायु और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है
  • नकारात्मक ग्रह दोष शांत होते हैं
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  • कर्क संक्रांति केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आध्यात्म और धर्म का संगम है। इस दिन पुण्य की धाराएं बहती हैं, और जो व्यक्ति श्रद्धा से स्नान, दान और पूजा करता है, उसे अखंड पुण्य प्राप्त होता है। इस खास दिन को व्यर्थ न जाने दें—सूर्य देव का आशीर्वाद लेकर जीवन को नई ऊर्जा और सकारात्मकता से भर दें।