मंदिरों में नारियल क्यों फोड़ा जाता है? मंगल कार्यों में इसके महत्व के साथ जानिए वह सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं
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- Mediavarta Desk
- June 4, 2022
- Dharm
सनातन धर्म में अनेक तरह के रीति रिवाज हैं। इस धर्म की इतनी गहराई है कि इसके बारे में आप जिनता जानना चाहेंगे। इसका ज्ञान उतना ही गहराता जाएगा। इस धर्म को समाज में हिंदू धर्म कहा जाता है। आपने भी अक्सर देखा होगा कि लोग मंदिरों में नारियल फोड़ते हैं या कोई धार्मिक अनुष्ठान करते समय घरों या कार्यस्थलों पर नारियल फोड़ा जाता है। आपके मन में भी विचार आता होगा कि आखिर मंदिरों में नारियल क्यों फोड़ा जाता है? इसकी क्या अहमियत है?
नारियल फोड़ने को लेकर अनेक आस्थाएं
मंदिरों में नारियल फोड़ने को लेकर अनेक तरह की आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। खासकर यह लोग अपने इष्ट देव की पूजा के समय करते हैं। आइए इसके आध्यात्मिक महत्व को समझते हैं। नारियल की तुलना मनुष्य के साथ की गयी है। नारियल के जटाओं की हमारी कभी न समाप्त होने वाली इच्छाओं से तुलना की गयी है। नारियल फोड़ने से पहले हम उसकी जटाओं को उतारते हैं। इसका संदेश यह होता है कि पहले मनुष्य को अपने अंदर उठ रहे कभी न खत्म होने वाले विचारों के आवरण को त्यागना होगा। उसके बार नारियल खोला जाता है।
नारियल के जल की तुलना मनुष्य के अहंकार से
इसकी तुलना मनुष्य के अंदर जमे अंहकार से की जाती है। परमात्मा से मिलन से पूर्व हमें अपने अहंकार को समाप्त करना होता है। नारियल फोड़ने के बाद उसमें से जो जल निकलता है। उसकी तुलना हमारे अंदर पल रहे अहंकार से की जाती है। उस जल को हम अपने इष्ट देव को अर्पित करते हैं। यानि की हमें अपने अहंकार को अपने इष्ट को समर्पित कर देना चाहिए। इससे हमारे अंदर की निगेटिविटी खत्म हो जाती है। अब सिर्फ शेष नारियल की सफेद गिरी ही रह जाती है। इसकी तुलना आत्मा से की गयी है जो सबसे पवित्र और शाश्वत है।
तीन प्रकार का है शरीर
मान्यताओं के मुताबिक यह शरीर तीन तरह का है। इसे स्थूल शरीर, सूक्ष्म और कारण शरीर कहा जाता है। स्थूल शरीर प्रत्यक्ष तौर पर दिखता है। जिस शरीर से हम सारे काम करते हैं। दैनिक क्रियाएं संचालित होती हैं। सूक्ष्म शरीर का निर्माण हमारे मन व भावनाओं से मिलकर होता है। इसे एस्ट्रल बाडी भी कहते हैं। मान्यताओं के मुताबिक हमारे अवचेतन मस्तिष्क में संस्कार जमा रहते हैं। उनसे उत्पन्न हुए बीच से कारण शरीर निर्मित होता है। नारियल पर जो तीन आंखे बनी होती है। उनमें से दो आंखों की तुलना मनुष्य की दो आंखों से की गयी है। जबकि तीसरी आंख की तुलना ज्ञान नेत्र से की गयी है।
मंदिर में क्यों फोड़ा जाता है नारियल?
मंदिर में नारियल फोड़ने का मतलब यह होता है कि हम अपने अहंकार का त्याग कर रहे हैं और खुद का यानि आत्म बलिदान कर रहे हैं। अपने इष्ट के चरणों में अपना सब कुछ समर्पित कर रहे हैं। उस समय हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारा जीवन प्राणियों की सेवा के लिए न्यौछावर हो। मान्यताओं के मुताबिक मंदिर में नारियल इसीलिए फोड़ा जाता है ताकि हमें अपना संकल्प याद रहे और हम सत्कर्मों की तरफ निरन्तर अग्रसर हों।
शुभ कार्य में क्यों जरूरी है नारियल ?
सनातन धर्म यानि हिंदू धर्म में नारियल और उसके जल को पवित्र माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक नारियल का पानी और उसके अंदर का सफेद गुदा चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष में चंद्रमा को मन कारक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि आप कोई काम शांत मन के साथ शुरू कर रहे हैं तो उसमें आपको सफलता मिलती है। इसी वजह से किसी भी कार्य की शुरूआत में सफलता के लिए पूजा में नारियल का प्रयोग होता है। नारियल में त्रिदेवों यानि ब्रहमा, विष्णु और महेश का वास होता है, ऐसी भी मान्यता है। नारियल में तीन आंखे त्रिदेवों के प्रतीक के तौर पर माने जाते हैं।
शुभ कार्यों में नारियल का क्या है महत्व?
नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। कुछ मान्यताओं के मुताबिक इसके तीन बिंदुओं को महादेव के त्रिनेत्र से भी जोड़ा जाता है। पर एक नारियल ऐसा भी होता है। जिस पर सिर्फ एक बिंदु होता है। उसे एकाक्षी नारियल कहते हैं। उसे बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि एकाक्षी नारियल में मां लक्ष्मी साक्षात वास करती है। एकाक्षी नारियल घर में रखने से सुख समृद्धि आती है। इसका जल यदि घर में छिड़का जाए तो निगेटिव इनर्जी खत्म होती है। घर में यदि यह नारियल रखा जाए तो उससे वास्तु का दोष भी समाप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि यदि नारियल फोड़ने के बाद उसका प्रसाद ग्रहण किया जाए तो उससे त्रिदेवों के साथ मां लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है। इन्हीं वजहों से शुभ कार्यों में नारियल की महत्व है।
नारियल तोड़ने की यह मान्यता भी है एक वजह
मांगलिक कार्यों में नारियल फोड़ने को नारियल का बलि देना भी कहते हैं। खासकर किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय इसे फोड़ना शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि नारियल की जटा और जल अहंकार और नकारात्मका का प्रतीक है, जबकि उसके अंदर का सफेद नारियल पवित्रता और शांति का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले यदि व्यक्ति अपने अहंकार से मुक्त हो जाए तो उसे सफलता मिलनी तय है। यानि शुभ काम को शुरू करने से पहले यह परम्परा प्रतीकात्मक तौर पर नारियल के रूप में अपने अहंकार को तोड़ने की याद दिलाता है। इसी वजह से नारियल तोड़ने की परम्परा पुरातन काल से चली आ रही है। ऐसी भी मान्यता है कि महिलाएं नारियल नहीं तोड़ सकती हैं। इसे सिर्फ पुरूष ही तोड़ सकते हैं।
इस संबंध में ये है पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार ऋषि विश्वामित्र, देवराज इंद्र से नाराज हो गए तो उन्होंने दूसरी सृष्टि की रचना करने की ठानी। उसमें उन्होंने नारियल का प्रयोग किया था। दूसरी ओर पुरातन समय में इष्ट के समक्ष बलि देने की परम्परा थी। उस परम्परा में जीवों की बलि के बजाए विकल्प के तौर पर नारियल को लाया गया। कुछ जगहों पर इसका भी उल्लेख मिलता है।
मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु उस समय अपने साथ नारियल का वृक्ष, कामधेनु और माता लक्ष्मी को लाए थे। जब वह पृथ्वी पर अवतरित हो रहे थे। पुराणों के मुताबिक माता लक्ष्मी को नारियल के स्वरूप में भी माना जाता है।
डिस्कलेमर: उपलब्ध करायी गयी जानकारी मान्यताओं के आधार पर दी गयी है। इसका कोई वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। सामान्य जनों की रूचि के चलते यह जानकारी दी गयी है।
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