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लखनऊ। सशत्र-बल अधिकरण, लखनऊ (सेना कोर्ट) ने लगभग अट्ठारह वर्षों से दिव्यांगता पेंशन की लड़ाई लड़ रहे तीन जांबाज सैनिकों को राहत दी है। कोर्ट ने ऐसे तीनों सैनिकों अवधेश कुमार दीक्षित, मारकंडे प्रसाद वर्मा और मोहन लाल पाल को दिव्यांगता पेंशन देने का फैसला दिया है।

कौन हैं ये तीनों जाबांज

अवधेश कुमार आर्टिलरी यूनिट में 1983 में भर्त्ती हुए थे।
मोहन लाल पाल इंजीनियरिंग कोर में 1984 में भर्ती हुए थे।
मारकंडे प्रसाद वर्मा एएमसी में 1967 में भर्ती हुए थे।
उन्होंने 23 से 30 साल तक सीमाओं की हिफाजत की।

मेडिकल आधार निकाले जाने की थी ये वजह?

तीनों को यह कहते हुए मेडिकल आधार पर निकाला गया कि प्राईमरी हाईपर टेंशन और न्युरोसिस की बीमारी सैन्य गतिविधियों, परिस्थितियों, तनाव और दबाव का परिणाम नहीं है। इसलिए, सेना दिव्यांगता पेंशन नहीं देगी। पर साठ वर्षीय योद्धाओं ने हार नहीं मानी, और अपने अधिकारों के लिए जंग जारी रखी।

पचास प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन देने का आदेश

तीनों सैनिकों ने सेना कोर्ट लखनऊ में अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से वाद दायर किया था। जिसकी सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव एवं वाईस एडमिरल अभय रघुनाथ कर्वे की खण्ड-पीठ ने यह फैसला सुनाया। फैसले में कहा गया है कि दिव्यांगता पेंशन पाने की सभी विधिक आवश्यकताएं याची पूरी करते हैं, दिव्यांगता बीस प्रतिशत से अधिक है, उन्हें मेडिकल आधार पर निकाला गया है, सैन्य सेवा काफी लंबी है, भर्ती के समय कोई बीमारी नहीं थी और विपक्षी यह साबित करने के लिए कोई ठोस आधार प्रस्तुत नहीं किए हैं। जिससे यह माना जा सके कि बीमारी सेना से संबंधित नहीं है। इसलिए रक्षा-मंत्रालय भारत सरकार पचास प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन चार महीने के अंदर याची को दे, आगे यह भी कहा गया है कि निर्धारित अवधि में आदेश का पालन न होने की स्थिति में याची आठ प्रतिशत व्याज का हकदार भी होगा।

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