Gyanvapi Masjid: क्या ज्ञानवापी कूप अभी भी मौजूद है? क्या है पौराणिक काल से संबंध
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- Mediavarta Desk
- June 2, 2022
- Dharm News Uttar-Pradesh
लखनऊ। काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) और ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) विवाद की वजह से धर्म नगरी वाराणसी एक बार फिर चर्चा में है। पर ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद क्या है? आखिर क्यों हिंदू पक्ष ज्ञानवापी मस्जिद पर अपना दावा कर रहा है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर वर्ष 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा गिराया गया था और उसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनायी गयी। काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच 10 फीट गहरा कृत्रिम कुआं है, उसे ज्ञानवापी कहा जाता है। दरअसल मस्जिद का नाम इसी कुएं के नाम पर पड़ा।
Gyanvapi Masjid: अब ज्ञानवापी कूप और आदि विश्वेश्वर मंदिर परिक्रमा मंडप के दायरे में आए
काशी विश्वनाथ धाम प्रॉजेक्ट की खास बात यह है कि अब मुख्य मंदिर परिसर में ज्ञानवापी कूप (Gyanvapi Kup) और आदि विश्वेश्वर मंदिर समेत नंदी परिक्रमा के मंडप में आ गए हैं। ज्ञानवापी कूप (Gyanvapi Kup) के पास ही विशाल नंदी मौजूदा समय में स्थापित हैं। ऐसी मान्यता है कि वह पुरातन काल से ही वहीं स्थापित हैं और उनका मुंह ज्ञानवापी मस्जिद के भूतल की ओर है। ऐसा माना जाता है कि मुगल शासकों के मंदिर विध्वसं के पहले आदि विश्वेश्वर का मंदिर वहीं स्थापित था। पुराणों के मुताबिक ज्ञानवापी का मतलब ज्ञान का कूप होता है। यह संस्कृत का शब्द है। खास बात यह है कि जिन ग्रंथों में काशी का वर्णन है, उनमें ज्ञानवापी के बारे में भी बताया गया है। इसे ज्ञान प्रदा ज्ञानवापी यानि शिव की जलमयी मूरत भी माना जाता है।
Gyanvapi Masjid: नंदी को तोड़ने में सफल नहीं हो सकी थी मुगल सेना
मान्यताओं के मुताबिक मंदिर विध्वंस के पहले ज्ञानवापी परिसर भी काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा था। वर्ष 1780 में महारानी अहिल्याबाई ने काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्वारा कराया था। जब मुगल सेना ने मंदिर पर हमला किया था और उसे गिराने की कोशिश की जा रही थी। उस समय मंदिर के महंत खुद शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कूप में कूद गए थे। उस समय शिवलिंग पन्ना का था। यह भी कहा जाता है कि मुगल सेना ने बहुत कोशिश की पर वह नंदी को तोड़ने में सफल नहीं हो सके। हालांकि मंदिर गिराने के बाद उसके मलबे से उसी स्थान पर मस्जिद का निर्माण कराया गया।
क्या है ज्ञानवापी का पौराणिक काल से संबंध?
हिंदूओं के धार्मिक ग्रंथ स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव जब ध्यान अवस्था में बैठते थे और समाधि में चले जाते थे तो उनका स्वरूप शिवलिंग की तरह हो जाता था और उसमें से ज्योति फूटती थी। इसीलिए शिविलंग को ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। उस समय उत्पन्न उष्मा को शांत करने के लिए जल की आवश्यकता होती है ताकि जलाभिषेक किया जा सके। मान्यताओं के मुताबिक शिवजी ने काशी में समाधिस्थ होने से पहले जलाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ज्ञानवापी कुएं का निर्माण किया था। मान्यता है कि इस कूुएं का जल बहुत ही मीठा होता है। इसके सेवन से ज्ञान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को मोक्ष मिल जाता है। इस संबंध में एक और मान्यता है कि शिवजी ने मां पार्वती को इसी जगह पर ज्ञान दिया। इस वजह से भी इस स्थल को ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं कहा जाता है। हिंदूओं के इस पवित्र स्थल का संबंध पौराणिक काल से है।
ज्ञानवापी को लेकर पहला मुकदमा 1936 में हुआ दर्ज
ज्ञानवापी परिसर (Gyanvapi Masjid) को लेकर पहला मुकदमा वर्ष 1936 में दर्ज हुआ था। उस समय भी दीन मोहम्मद की तरफ से यह मुकदमा वाराणसी की निचली अदालत में दायर की गयी थी। दीन मोहम्मद ने मुकदमें में राज्य सरकार को चुनौती देते हुए मस्जिद और उसके आस पास की जमीनों पर अपने हक का दावा किया था। पर निचली अदालत ने यह मानने से इंकार कर दिया।
हाईकोर्ट में 1937 में चला मुकदमा
दीन मोहम्मद ने फिर वर्ष 1937 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सिर्फ मस्जिद के ढांचे को छोड़ा। बाकि सभी जमीनों पर वाराणसी के व्यास परिवार के हक को जायज ठहराया और तहखानों के मालिकाना हक पर भी व्यास परिवार के पक्ष में फैसला दिया। तत्कालीन डीएम वाराणसी की तरफ से पेश किया गया नक्शा भी हाईकोर्ट के फैसले का हिस्सा बना।
क्या ज्ञानवापी परिसर है वक्फ बोर्ड की संपत्ति?
खालिद सैफुल्लाह रहमानी, महासचिव, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का दावा है कि हाईकोर्ट ने उस समय अपने फैसले में कहा था कि ज्ञानवापी परिसर वक्फ बोर्ड की संपत्त्ति है। वजूखाने भी मुसलमानों का अधिकार है। इसलिए मुस्लिम वहां नमाज पढ सकते हैं। इसी जगह पर हिंदू पक्ष शिवलिंग पाए जाने का दावा कर रहा है। जबकि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का एरिया निश्चित कर दिया था।
54 साल बाद फिर अदालत की चौखट तक पहुंचा मामला
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी परिसर (Gyanvapi Masjid) को लेकर 1937 के बाद लम्बे समय तक खामोशी छायी रही। फिर 15 अक्टूबर 1991 को इस सिलसिले में एक नयी याचिका दायर की गयी। उसमें मंदिर बनाने और पूजा पाठ करने की इजाजत की अपील की गयी थी। यह याचिका पंडित सोमनाथ व्यास, डा राम रंग शर्मा और हरिहर पांडे की तरफ से दायर की गयी थी। तर्क दिया गया था कि मंदिर को 1669 में औरंगजेब ने तुड़वा दिया था। जबकि यह मंदिर 2050 साल पहले सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा निर्मित कराया गया था।
1991 में भी निचली अदालत ने सबूत जुटाने का दिया था आदेश
उस समय वाराणसी कोर्ट के सिविल जज (सीनियर डिविजन) ने हिंदू पक्ष के दावे पर मामला चलाने का आदेश दिया। इस आदेश को जिला जज की अदालत में चैलेंज किया गया। तब जिला जज ने सीनियर डिवीजन के फैसले को खारिज करते हुए सबूत जुटाने को कहा। इसके बाद अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की और कहा कि वर्शिप एक्ट के तहत इस प्रकरण में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता। बहरहाल तब हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर रोक लगा दिया था।
ये मान्यताएं हैं प्रचलित
ज्ञानवापी परिसर के निर्माण को लेकर अलग अलग मान्यताए प्रचलित हैं। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक जौनपुर के सुल्तान ने 14वीं सदी में काशी विश्वनाथ मंदिर को गिरवाकर मस्जिद बनवायी। जबकि कुछ का कहना हे कि दीन—ए—इलाही मजहब के तहत अकबर ने 1585 में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर बनाने का आदेश दियाा था। अब ताजा मामले में स्थानीय निचली अदालत के आदेश के बाद ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे हुआ। हिंदू पक्ष शिवलिंग मिलने का दावा कर रहा है और मुस्लिम पक्ष इसे फौव्वारा बता रहा है।
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