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Dr. Mohammad Kamran

विकास दुबे का अंत हुआ लेकिन विकास दुबे का जब जब नाम आया हमारे मादरे वतन कानपुर का ज़िक्र भी सबकी ज़ुबान पर आया, लेकिन कानपुर की पहचान किसी विकास दुबे जैसे गुंडे से नहीं हो सकती, क्रांति की मशाल जलाने वालों और हिंदी पत्रकारिता की जनक है हमारी ये धरती। नाना साहब पेशवा, अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी, नवीन हसरत मोहानी, बटुकेश्वर दत्त जैसे नायकों की धरती है यह कानपुर, चुपके चुपके रात दिन जैसे नगमों को गुनगुना कर अंग्रेजों की फौज को घुटनों पर लाने वाली धरती है हमारी कानपुर। देश की राजनीति से लेकर मीडिया, फिल्म इंडस्ट्री और उद्योग जगत को नामी हस्तियां देने वालों के नाम से जाना जाता है हमारा कानपुर।

कई दिनों से कानपुर सुनते सुनते आज लखनऊ कानपुर बॉर्डर पर Lockdown का जायज़ा लेने निकले तो गाड़ी खुद ब ख़ुद कानपुर की तरफ़ बढ़ती गयी और गंगापुल से शुरू हुए गड्ढों पर जैसे-जैसे गाड़ी उछाल मार रही थी दिमाग में वैसे वैसे अतीत के पन्ने पलट रहे थे। कानपुर की सड़कों में आज भी वही अपनापन है जो पहले था, वक़्त के साथ अपनापन थोड़ा और गहरा हो गया है, किसी भी सरकारी योजना का कानपुर ने अपने ऊपर कोई रंग नही चढ़ने दिया है, सड़कों पर गड्ढों का इतना अपनापन बढ़ गया है कि गंगापुल से सर्किट हाउस आने तक गाड़ी ने इतनी उछाल मारी की 1857 से लेकर अबतक का सारा इतिहास सामने आ गया, कानपुर की शोहरत और इक़बाल के सारे किस्से ज़हन में आ गए।

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उत्तर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी के नाम से जाने वाला यह शहर हिंदुस्तान की आजादी की क्रांति की लड़ाई में अनेक वीरों को ही नही पैदा किया वरन हिंदी पत्रकारिता के जनक भी इसी शहर से जन्मे हैं, लेदर और कपड़ों के व्यवसाय का देश विदेश में कारोबार भी यही से किया जाता रहा, बड़े बड़े राजनेता, केंद्रीय मंत्री देने वाला यह शहर नज़रंदाज़ किया जाता रहा है, वर्तमान में योगी सरकार के प्रभावशाली कैबिनेट मंत्री भी इसी शहर से है लेकिन इस शहर की दुर्दशा का क्या कहना, गंगा किनारे बसे इस शहर की गंदगी और सालों साल से साफ हो रही गंगा की एक ही कहानी है। गंगा की सफाई का मलाल गंगा ने बिना अपना दर्द बयान किये सह लिया वैसे ही कानपुर वासियों ने शहर के ख़राब हालातो, गंदगी, गड्ढा युक्त सड़को की बेबसी और सरकार द्वारा की जा रही अनदेखी पर अपना मुंह बंद कर लिया, लेकिन यूं खामोश रहकर क्या होगा।

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कुछ तो करना होगा, क्यों ना कानपुर के विकास के लिए, कानपुर की खुशहाली के लिए, कानपुर को एक नए रंग में रंगने के लिए, शहर का नाम बदलकर एक नया प्रयोग किया जाए जिस तरह हमारे फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे बहुत से सितारे हैं जिन्होंने चमकने के लिए अपने असली नाम को बदलने में जरा सी भी देर नहीं की और फिर देखते ही देखते उनको एक बड़ा नाम और काम दोनों मिले। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा अपने कार्यकाल में जिस सफकतापूर्वक तरीके से जिले और सड़कों का नामांकन किया जा रहा है, उस नामकरण के दौर में क्यों ना औद्योगिक नगरी कानपुर का फिर से वही पुराना नाम रख दिया जाए जो अंग्रेजी वर्णमाला के C अक्षर से प्रारंभ होता था और आज भी कानपुर की कई पुरानी इमारतों पर कानपुर का नाम C अक्षर से ही लिखा दिखाई देता है। कान्हापुर से शुरू हुआ सफर Kanpur तक आया और फिर अंग्रेज़ी हुक्मरानों ने अंग्रेज़ी भाषा के नज़रिए से इसे Cawnpore लिखना शुरू कर दिया, Cawnpore होते ही 1807 में हार्नेस और सैडलर फैक्ट्री की शुरुआत हुई, 1880 में कूपर एलेन एंड कंपनी की स्थापना हुई और 1882 में पहली टेक्सटाइल कॉटन मिल और एलगिन मिल के चालू होते ही कानपुर एक बड़ी औद्योगिक नगरी के रूप में विश्वविख्यात हुआ। अंग्रेज चले गए, अंग्रेजी चली गई, C फॉर कानपुर, K फ़ॉर कानपुर हो गया लेकिन शहर की तरक्की का दौर कम नही हुआ, IIT, HBTI जैसे शैक्षिक संस्थान और गन फैक्ट्री कानपुर शहर के लिए एक बड़ी सौगात के रूप में। विकसित हुए। वक़्त की करवटों के साथ अब लगता है कि K फ़ॉर कानपुर का रंग जम नही रहा है और K अक्षर अपना रंग दिखा रहा है।

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रंगों की परिभाषा में अंग्रेजी वर्णमाला का K अक्षर काले रंग के लिए माना जाता है और यही वजह है कि काला रंग अब कानपुर के ऊपर उमड़ रहा है, विकास दुबे जैसे दुर्दांत अपराधियों का इस शहर में जन्म लेना कोई अपराध नहीं है लेकिन हालात और परिस्थितियों के चलते अपराधी बन जाना और फिर शहर के नाम को ऐसे अपराधियों से जोड़े जाना कहीं ना कहीं इस बात को प्रमाणित करता है कि काला अक्षर अपना रंग दिखा रहा है। काले कारनामे का अंत काला हो गया है।

विकास का अंत हुआ है लेकिन कानपुर के विकास का भी अंत दिख रहा है, पूरे शहर का कही भी विकास नही दिखता, पुरानी धरोहरें समाप्त हो रही है, Manchester of India कहे जाने वाले इस शहर से उद्योग खत्म हो रहा है, सड़के बेहाल है, बेरोजगारी के चलते अपराध बढ़ रहा है, तो क्यों न इस शहर का नाम बदल कर फिर वही अंग्रेज़ियत वाला नाम कर दिया जाए जो आज भी कानपुर की ऐतिहासिक धरोहर लाल इमली मिल, यतीमखाने और शहर की पुलिस कोतवाली पर दर्ज है। क्यों ना इस शहर की जाती हुई प्रतिष्ठा, गौरव को वापस लाने में उसका नाम बदलकर एक प्रयोग किया जाए, विकास तो नहीं संभव है लेकिन प्रतिष्ठा वापस आ सकती है और इसी बहाने योगी सरकार द्वारा नाम बदलने के जो सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं उसका एक और तमगा सरकार के कंधों पर चमकाया जाए, गड्ढे ना सही, अपराध ना सही लेकिन नाम बदलने की चमक तो आने वाला कल याद रखेगा और हो सकता है नाम बदलने से बदल जाये कानपुर की तस्वीर और तक़दीर और फिर से देश विदेश में चमक जाये मैनचेस्टर कहे जाने वाला अपना कानपुर।

डॉ. मौहम्मद कामरान
पत्रकार
9335907080