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कैसा विद्रूप है ? दो अलहदा प्रकार के मुस्लिम जन पेश आ रहे हैं। एक हैं भारतीय इस्लामिस्ट जो उजबेकी लुटेरे जहीरुद्दीन बाबर के ध्वस्त ढांचे को अयोध्या में फिर से उठाना चाहते हैं। उच्चतम न्यायालय के निर्णय को चुनौती देंगे। जिन्ना के विभाजनवाले मंजर को दुबारा सर्जायेंगे।

दूसरे लोग हैं आस्थावान मुसलमान जो दारुल इस्लाम की खोज में भारत छोड़कर कराची चले गये थे| पाक जमीं का तसव्वुर संजोये थे। उनका मोह भंग हो गया। भ्रमित थे अब मजहब के मायने समझ गये। उनका मानना है कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को हर अकीदतमंद हिन्दुस्तानी मुसलमान को मानना चाहिए। उन्हीं की राय में : “जिन भारतीय मुसलमानों को अदालते आलिया का मन्दिर वाला फैसला स्वीकार नहीं है, वे भारत छोड़ दें।”

पाकिस्तान में सपना टूट जाने पर ये मुहाजिर लोग अपने पूर्वजों की भूमि पर लौटने के लिए वर्षों से प्रयासरत हैं। अब आये हैं जागृत दशा में हैं, सुधरे हैं। इस जमात में थे आगरा (नाई की मण्डी) के वाशिंदे ब्रिटिश रेल के अधिकारी मियां नाजिर हुसैन और उनकी बेगम खुर्शीद। उनके दादा मोहम्मद रमजान आगरा के मुफ़्ती-ए-आजम थे। नाना पीर हाजी हाफिज रहीम बख्श कादरी जो मौलाना थे। इनके छः बेटों और चार बेटियों में खास नाम हैं कराची में जन्मे अल्ताफ हुसैन का, जिनकी मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट ने भारत से गए शरणार्थी (मुहाजिर) जन को संगठित किया और पंजाबी, सिन्धी और पठान मुसलमानों के जुल्मों से बचाया। इन उर्दू-भाषियों ने वर्षों तक भारत-विरोधी जहर उगलने वालों का सामना किया।

इन मुहाजिरों के पुरोधा अल्ताफ हुसैन ने गत सप्ताह (12 नवम्बर 2019) नरेंद्र मोदी से अपील की कि उन्हें उस जगह बसने की अनुमति दें जहाँ उनके पुरखे दफन हैं। भारत के प्रधान मंत्री से अलताफ हुसैन ने प्रार्थना की है कि बलूचिस्तानी तथा सिन्धीजन भी भारत के पक्षधर हैं। अखण्ड हिंदुस्तान से कट जाने का गम इन सब को बड़ा सालता रहा है।

“जिये सिंध कौमी महाज” के संस्थापक जी.एम. सैयद और मोतीमहल परिवार के सैयद मुबारक अली शाह के कई अनुयायी लोग आज पंजाब-शासित पाकिस्तान से अलग होने के इच्छुक हैं। अल्ताफ हुसैन जिन्नावादी कश्मीर में पाकिस्तानी फ़ौज की जघन्यता की खुलकर भर्त्सना कर चुके हैं। कराची पर तालिबानियों के अपराधों का डटकर मुकाबला करते रहे। अल्ताफ हुसैन द्विराष्ट्र सिद्धांत को उपमहाद्वीप में हुई अपार जन-धन क्षति की बड़ी वजह मानते हैं। विभाजन को इतिहास की महानतम गलती करार दे चुके हैं हुसैन। बंटवारे से लहू के रिश्ते और भ्रातृत्व की भावना की हत्या की गई थी। सात दशक लगे जिन्नावाद से मोह टूटने में इन मोहाजिरों को। भारतीय मुसलमानों को इस अनुभव से सचेत होना होगा।

सवाल है, तो क्या आज फिर कुछ भारतीय मुसलमान एक टूटे ढांचे की आड़ में राष्ट्र को काटेंगे ? मन्दिर विरोध को आधार बनाकर फिर 1947 को दुहराया जायेगा? भारतीयों को जवाब चाहिए।

—-:K Vikram Rao:—-