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Ajay Shukla
खबर आई कि इंदौर में कोरोना संक्रमितों की जांच के लिए गई डा. जाकिया सईद और डा. तृप्ति की टीम पर हमला कर दिया गया। हैदराबाद में डाक्टरों को पीटा गया। मुंगेर में डांक्टरों से मारपीट की गई। गाजियाबाद में संक्रमित मरीजों ने पैरामेडिकल स्टाफ से बदतमीजी की। दो डाक्टरों की कोरोना मरीजों का इलाज करते मौत हो गई। एक खबर जम्मू-कश्मीर से आई, जहां मेडिकल कालेज के डा. बलविंदर सिंह ने मांग की कि डाक्टरों के पास मास्क और पीपीई किट नहीं हैं, उपलब्ध करायें। यह सिर्फ बानगी है। देशभर में डाक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ के साथ बदसलूकी की सौ से अधिक घटनाएं हुई हैं। वो संकटों से जूझते इलाज कर रहे हैं मगर अस्पतालों में पीपीई किट और एन95 मास्क का गंभीर संकट है। इन हालात में भी मानवता की सेवा करने वालों पर हमले निश्चित रूप से शर्मनाक हैं। इसके अलावा कई शर्मनाक स्थितियां देश की उन सड़कों पर देखने को मिल रही हैं, जो यूपी-बिहार की ओर जाती हैं। अपने घरों की ओर पैदल, साइकिल, बाइक और रिक्शे से जाते मजलूमों से पुलिसकर्मी ऐसे व्यवहार कर रहे हैं कि वो गुलाम प्रथा के गुलाम हों। गुजरात से लेकर दिल्ली तक लाखों प्रवासी अपने घरों के लिए पलायन करते हैं क्योंकि वहां की सरकारें वक्त पर मदद नहीं करतीं। पिछले 10 दिनों में इन सड़कों पर 69 लोग दम तोड़ चुके हैं, कुछ भूख से तो कुछ तनाव और थकान से, कुछ सड़क हादसे में। ऐसे में भी देश का सुविधाभोगी मिडिल क्लास, गरीबों-मजलूमों का एसी कमरों में बैठकर मजाक बनाते और उन्हें कोसते हैं। सियासी लोग अपने एजेंडे सेट करने में लगे हैं।
केंद्रीय स्वास्थ मंत्रालय के मुताबिक देश में अब तक तीन हजार से अधिक लोग कोरोना वायरस संक्रमित हो चुके हैं। कोविड-19 ने 95 लोगों की जान ले ली है। अस्पतालों और डाक्टरों की जरूरत के मुताबिक संसाधन नहीं हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से भूख से बिलखते लोगों के संदेश मिल रहे हैं। तमाम बीमार-बेजार भी संकट की इस घड़ी में सरकार के साथ खड़े हैं, जिससे कोरोना भयावह रूप न ले ले। अजीम प्रेमजी और रतन टाटा जैसे उद्यमी हजारों करोड़ रुपये इस जंग के लिए दे रहे हैं। हजारों सजग और संवेदनशील लोग मदद को आगे आ रहे हैं। अक्षय कुमार, सलमान और शाहरुख खान जैसे फिल्मी सितारों ने जहां मानवता की मिसाल कायम की है, वही अनुपम खेर और उनकी सांसद पत्नी किरण खेर जैसों ने संकुचित मानसिकता का परिचय दिया है। सबसे अधिक कमाई वाले अमिताभ बच्चन से लेकर क्रिकेटरों तक ने सिर्फ अपने लिए जीने वाला चेहरा दिखाया है। जहां गुरुद्वारों ने दिल खोलकर सेवा शुरू की है, वहीं कुछ चुनिंदा मंदिरों को छोड़कर किसी ने कोई मदद नहीं दी। मीडिया समूहों में सिर्फ आईटीवी ने ही भूखों को खाना और कोरोना से जागरुकता का अभियान चलाया है। संकट की घड़ी में एक अच्छी खबर एम्स दिल्ली से आई कि पहली कोरोना संक्रमित गर्भवती महिला की सफल डिलीवरी 10 डॉक्टरों की टीम ने आइसोलेशन कक्ष को ऑपरेशन थियेटर बनाकर कराई। जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। वहीं, मानवता को शर्मसार करने वाली खबर, अमृतसर से आई। जहां कोरोना पीड़ित पदमश्री रागी का लोगों ने श्मशान घाट में अंतिम संस्कार भी नहीं होने दिया।
केंद्र सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये का जो राहत पैकेज बनाया है, वह ऊंट के मुंह में जीरा है। पीड़ितों की राहत में सहयोग के लिए संवैधानिक व्यवस्था में बने पीएम राहत कोष की बजाय पीएम केयर फंड बनाकर हजारों करोड़ रुपये जुटा लिये गये हैं। नए बने इस फंड ने साइबर क्राइम को भी जन्म दे दिया है। वजह, इस फंड के डिजिटल यूपीआई से लोग वाकिफ नहीं हैं और साइबर ठग उन्हें शिकार बना रहे हैं। एक विधिक फंड रहते दूसरा बनाने की जरूरत क्यों पड़ी, इसका जवाब न अर्थ विशेषज्ञ और न सरकार के पास है। देश में इस महामारी के संकट का केंद्र सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति से खड़ा हुआ है। स्वास्थ मंत्रालय ने 13 मार्च को अपने मीडिया बुलेटिन में कहा था कि भारत में कोविड-19 महामारी का खतरा नहीं है, जबकि मुख्य विपक्षी दल के सांसद राहुल गांधी ने फरवरी के पहले सप्ताह से लेकर 15 मार्च तक दर्जन बार सरकार को कोविड-19 के खतरे से आगाह किया था। सरकार ने इसको भी इवेंट बनाने की तैयारी कर ली, तब जागी। 19 मार्च की रात प्रधानमंत्री ने चिंता व्यक्त की और दो दिन बाद जनता कर्फ्यू की घोषणा की। देश को लाकडाउन करने का जब फैसला लिया गया, तब न कोई तैयारी, न इसका क्रियान्वयन कराने वाले राज्यों के प्रमुखों से कोई चर्चा। नतीजा, देश कोरोना के साथ ही अन्य गंभीर संकटों में भी फंस गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाकडाउन से उत्पन्न हुए संकटों से निपटने के लिए एक सप्ताह बाद राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग पर चर्चा की, तो सभी की एक शिकायत कि उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से कोई राहत पैकेज नहीं मिला। पैकेज तो दूर, राज्यों के राजस्व का हिस्सा (जीएसटी) भी केंद्र सरकार दाबे बैठी है। वित्तीय वर्ष खत्म होने पर भी नहीं दिया गया। केंद्र सरकार सिर्फ बातें कर रही है, धन नहीं दे रही। नतीजतन, मरीजों और डाक्टरों को जरूरी सुविधायें मुहैया नहीं कराई जा पा रही हैं। गरीब-दिहाड़ीदारों के लिए भी उचित व्यवस्था नहीं हो पा रही है। अभी तक सभी राज्य अपने संसाधनों और शक्ति से कोरोना वायरस तथा तमाम संकटों से लड़ रहे हैं। इसमें यह भी बात सामने आई कि अगर पहले ही योजना बना ली गई होती तो शायद इतने बुरे हालात न होते। सभी संकटों को समझने के बाद भी अब तक केंद्र सरकार ने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया, सिवाय प्रधानमंत्री के दीप-रोशनी के इवेंट के संदेश के। इस पर कांग्रेस प्रवक्ता प्रो. गौरव वल्लभ ने कटाक्ष करते सवाल किया कि अगर किसानों, गरीबों, कामगारों, डाक्टरों को उचित मदद, सुरक्षा और संसाधन मिल जाएंगे तो हम हर रोज दीप जलाएंगे मगर अभी क्यों?
कोरोना संकट की तैयारियों, खामियों और प्रभाव पर होने वाली आलोचना से बचाने के लिए सत्तारूढ़ दल ने हिंदू-मुस्लिम का नेरेटिव सेट करना शुरू कर दिया है। जिसके लिए दिल्ली के निजामुद्दीन पुलिस थाने के साथ स्थित छह मंजिली मरकज में 13 से 15 मार्च तक तब्लीगी जमात को आधार बनाया जा रहा है। जमात की पूर्व अनुमति थी। यहां की गतिविधियों की रिपोर्ट आईबी और दिल्ली पुलिस की खुफिया शाखा नियमित रूप से सरकार को देती है। मरकज प्रबंधन पर लोगों को छिपाने का आरोप लगा जबकि लाकडाउन में यहां फंसे जमातियों को उनके स्थानों तक पहुंचाने के लिए उन्हें पास नहीं दिये गये। जो संक्रमित लोग विदेश से आए, उनको एयरपोर्ट पर केंद्र की व्यवस्था में जांचा गया था। इन्हीं तीन दिनों में पंचकूला में अग्रवाल समाज का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ, जिसमें हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष सहित करीब डेढ़ हजार लोग सम्मिलित हुए। 19 मार्च तक तिरुपति में 40 हजार, काशी विश्वनाथ और वैष्णों देवी में हजारों श्रद्धालु दर्शन को मौजूद थे। तब्लीगी जमात की गलती यह है कि जब उनके लोगों में कोरोना का लक्षण मिला था, तो उन्हें तत्काल ही इसकी सूचना देनी चाहिए थी, यह न होना अक्षम्य अपराध है। 22 मार्च की शाम पब्लिक कर्फ्यू में हुए इवेंट ने जहां सोशल डिस्टेंसिंग को तोड़ा वहीं, अब देखिये पांच मार्च के इवेंट में क्या होता है? नेरेटिव सेट करने वालों के देखना चाहिए कि बुलंदशहर में कोरोना संक्रमित रविशंकर की मौत होती है, तो कोई हिंदू नहीं बल्कि मुसलमान “रामनाम सत्य है” बोलकर अर्थी उठाते और अंतिम संस्कार करते हैं।
एक सवाल उन्नाव के सेशन जज प्रह्लाद टंडन ने देश के सभी जजों के चिट्ठी लिख उठाया है कि जब इस वक्त देश के तमाम संजीदा लोग और सरकारी मुलाजिम कोरोना से जंग में जी जान से जुटे हैं, तो ऐसे वक्त में न्यायपालिका के लोग घर में क्यों बैठे हैं? उन्होंने कहा कि हम अब भी खामोश रहे, तो इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। निश्चित रूप से जज टंडन की बात सही है। यही सवाल मीडिया और सियासी लोगों से भी, कि सच और सेवा के साथ खड़े हों, निजी स्वार्थ में प्रपोगंडा या नेरेटिव के लिए काम न करें। मौत कब किसको ले जाएगी, पता नहीं। आपके साथ सिर्फ सद्कर्म जाएंगे, धन या सियासी विचारधारा नहीं। पराशक्ति का यही संदेश है कि वह हिलेगी और सब खत्म।
जयहिंद!
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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)