यह चुनाव भी बीजेपी की जीत और विपक्ष की हार
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- Mediavarta Desk
- October 24, 2019
- Media
अगर मैं कहूं कि यह चुनाव भी बीजेपी की जीत और विपक्ष की हार है तो आप बुरा मान जायेंगे। मगर मेरे हिसाब से सच यही है। PMC बैंक के फेल होने पर महाराष्ट्र में जो हालात बने थे और खट्टर के खिलाफ हरियाणा में जो गुस्सा था, उसे विपक्ष ठीक से अपने पक्ष में नहीं कर पाया, नहीं तो इन दोनों राज्यों में क्लीन स्वीप होना था। bjp अभी भी इन दोनों राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी है। उसे थोड़ा सा नुकसान हुआ है, उसका आधार घटा है। मगर उसके चुनावी रणनीतिकारों ने उसे बचा लिया है। इस चुनाव में भी जनता ने विपक्षियों पर खुल कर भरोसा नहीं जताया है।
दरअसल हकीकत यह है कि आज लोगों के मन में कांग्रेस और दूसरे परिवारवादी दलों के प्रति भरोसा खत्म हो गया है। लोगों के मन में यह बात बैठ गयी है कि ये खानदानी दल निकम्मों के गिरोह हैं और इनके लिए सत्ता पाने का मतलब सिर्फ पैसे बनाना है। इन दलों में कोई ताजगी नहीं है। इनकी छवि ही खाए और अघाए लोगों की बन गयी है। वोटर इसी वजह से पिछ्ले 5-6 सालों से इन्हें लगातार रिजेक्ट कर रहे हैं।
बीजेपी आर्थिक मोर्चे पर विफल है, जन विरोधी है मगर लोगों के सामने विकल्प क्या है? किसी बड़े नेता का नाकाबिल बेटा, जिसके इर्द गिर्द अवसरवादी चमचों की फौज है? यही वजह है कि लोग उकता भी जाते हैं मगर इन्हें मजबूती देने से परहेज करते हैं। अगर मुसलमान नहीं होते तो इनका आधार वोट भी अब तक जीरो पर पहुँच गया होता।
हमें दंगाई, नफरत फैलाने वाले, गरीब विरोधी, पूंजीपतियों की दलाली करने वाले बीजेपी का विकल्प चाहिये। मगर वह विकल्प कोई अवसरवादी, सत्तालोलुप, भ्रष्ट पृष्ठभूमि वाला बड़े बाप का नाकाबिल बेटा नहीं हो सकता। लोगों को और खास कर लिबरल समाज को इस किस्म की सुविधाभोगिता से बाहर निकलना चाहिये। यह नहीं कि बीजेपी से दुखी हैं तो आदित्य ठाकरे और दुष्यंत चौटालों का जय गान करने लगें। एक क्षण रूक कर सोचिये कि क्या ये नेतृत्व के योग्य हैं, इनमें ईमानदारी राजनीति के कोई गुण हैं क्या? क्या ये हमलोगों के नेता हो सकते हैं? यह देश अब नया और फ्रेश राजनीतिक विकल्प मांगता है, जो वाकई आम लोगों का हिमायती और सबको जोड़ कर साथ लेकर चलने वाला हो और उसमें नेता वाली बात भी हो।