
मौसम बदलने के साथ ही वायू प्रदूषण का जो शुरूआती परिणाम सामने आया है वह चिन्ताजनक है। यह केवल यूपी के लिए नही बल्कि पूरे देश के लिए चिन्ता जनक है। एयर क्कालिटी इंडेक्स का ठंण्ड के पूर्व आया आकड़ा चिन्ता जनक है। बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए अब सरकार को संख्ती बरतने का वक्त आ चुका हैं। हर राज्य की सरकारें प्रतिवर्षानुसार वृक्षारोपण का ऐतिहासिक अभियान चलाती है लेकिन उसकी वास्तविक समीक्षा कोई सरकार नही करती। अब जबकि पराली जलाने से लेकर अब दो दिन की दिवाली में होने वाला पटाखों का धुंध वायु को जहरीला बनाने में कोई कसर नही छोड़ेगा। ऐसे में अगर पटाखों को लेकर भी सरकार संख्ती का रूख अख्तिायर कर ले तो गलत नही होगा। दूसरी तरफ दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए भारतीय उद्योग परिसंघ भी आगे आ गया। वह पंजाब और हरियाणा की सरकारों से मिलकर इसकी कोशिश करेगा कि यहां के किसान पराली न जलाएं। केंद्र सरकार पहले से ही इस कोशिश में है कि दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में पराली न जले। दिल्ली को प्रदूषण से बचाने की कोशिश राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अर्थात एनजीटी के साथ सुप्रीम कोर्ट भी कर रहा है। इन सबके अलावा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी है और पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण भी। इन सबके प्रयासों ने असर दिखाया है और दिल्ली एवं आसपास के इलाके को प्रदूषण से पूरी तरह न सही, एक बड़ी हद तक राहत मिली है। इसकी एक वजह आम जनता की जागरूकता भी है और यह पहलू भी कि नीति-नियंताओं का एक बड़ा वर्ग दिल्ली में रहता है।
दिल्ली में प्रदूषण की रोकथाम के मामले में केंद्र और दिल्ली सरकार के साथ तमाम सरकारी एजेंसियों की सक्रियता से बेहतर नतीजे मिलने की उम्मीद आगे भी की जाती है, लेकिन क्या दिल्ली ही देश है? यह सवाल इसलिए, क्योंकि मौसम में नमी बढ़ने और तापमान घटने के साथ ही उत्तर भारत के अन्य शहर भी प्रदूषण की चपेट में आ रहे हैैं। अभी आई रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के लखनऊ से लेकर कई शहरों की एक्रूूआई की स्थिति काफी चिन्ताजनक है। उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के भी कई शहरों में हवा की गुणवत्ता में गिरावट दर्ज होनी शुरू हो गई है। आने वाले दिनों में उत्तर भारत में प्रदूषण का दायरा और बढ़ने का अंदेशा है। इस अंदेशे का एक बड़ा कारण यह है कि पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी देश के र्चुंनदा प्रदूषित शहरों की सूची में कानपुर, आगरा, वाराणसी से लेकर गया, पटना और मुजफ्फरपुर भी शामिल थे। अब अगर सर्दियों में उत्तर भारत के उन शहरों की हवा की गुणवत्ता भी खराब हो जा रही है जो औद्योगिक शहरों में गिनती नहीं रखते तो इसका मतलब है कि प्रदूषण की समस्या कहीं अधिक गंभीर हो चुकी है और वह केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं है। विडंबना यह है कि दिल्ली के प्रदूषण को लेकर जैसी चिंता जताई जाती है वैसी कोई चिंता उत्तर भारत के अन्य शहरों को लेकर नहीं की जाती। न तो िदल्ली के मुकाबले उत्तर भारत के अन्य शहरों के लोग दोयम दर्जे के हैैं और न ही ऐसा कुछ है कि उनके लिए प्रदूषण कम घातक है। ऐसे में क्या यह जरूरी नहीं कि देश के हर हिस्से के लोगों की सेहत की चिंता समान भाव से की जाए?
कई लोग कहेंगे कि ‘‘ प्रदूषण ’’ पुराना और रटा-रटाया मुद्दा है, पर सवाल पुराने या नए का नहीं है बल्कि असल सवाल है कि हम अपनी जीवनशैली को किस प्रकार बेहतर कर सकते हैं, जबकि अपने साथ आने वाली पीढ़ियों के संभावित जीवन को हम प्रदूषण बढ़ाकर और बदतर बनाने की राह खोलते जा रहे हैं। न केवल देश में बल्कि विश्वभर में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है। ग्लोबल वार्मिंग लगातार बढ़ी है और ग्रीन हाउस गैस को कम करने के लिए श्सम्मेलन पर सम्मेलनश् हो रहे हैं। विकसित और विकासशील देशों में इस पर खूब माथापच्ची हो रही है, समझौते हो रहे हैं पर उसका नतीजा क्या निकल रहा है यह कहना अपने आप में बेहद मुश्किल है। पिछली दीपावली एक बार फिर देशभर में उत्साह का माहौल लेकर आई तो साथ में इसे जहरीली गैस वातावरण में फैलाने का दोषी भी पाया गया। दीपावली के अगले दिन सभी समाचार-पत्रों में प्रदूषण के खतरनाक स्तर तक पहुंचने के समाचार प्रमुखता से दर्शाए गए थे। बेहद दुर्भाग्य है कि गलत काम आदमी करते हैं और बदनाम होता है कोई पवित्र त्यौहार! किसी भी त्यौहार के नियमों में यह नहीं लिखा है कि आप ऐसा कार्य करें जिससे आपको और दूसरे लोगों को नुकसान पहुंचे। बावजूद उसके हम हद से अधिक पटाखे चलाते हैं तो आलोचना होनी चाहिए। दीपावली में वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण भी काफी हद तक बढ़ा, इस बात में दो राय नहीं! ऐसी भी खबरें आईं कि दिवाली और उसके तुरंत बाद देशभर के विभिन्न अस्पतालों और निजी डॉक्टर के पास आने वाले मरीजों में दमा, खासी, इंफेक्सन, आंखों में जलन इत्यादि के मरीजों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गई। इस संबंध में कई कुतर्क करने वाले लोग सोशल मीडिया पर यह संदेश फैलाते दिखे की ‘‘ अगर बकरीद पर बकरे काटे जा सकते हैं, क्रिसमस के दिन पटाखे फोड़े जा सकते हैं और दूसरे त्यौहारों पर दूसरे कार्य किए जा सकते हैं तो सिर्फ दीपावली पर हम पटाखों पर नियंत्रण क्यों करें? क्या अजीब तर्क है? इतना ही नहीं पटाखों के समर्थन में यह संदेश भी फैलाया गया कि ओलंपिक या कामनवेल्थ गेम के उद्घाटन में जब पटाखे छोड़े जाते हैं, तो दीपावली में हम क्यों न छोड़ें?
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार 20 प्रदूषित शहरों में 13 शहर तो केवल भारत के ही हैं। यह आंकड़ा 2014 का है, तो एक अन्य आंकड़े में जो 2012 में जारी हुआ, उसके अनुसार भारत में 249304 लोगों की मौत हृदय रोग के कारण हुई, तो 195000 लोग दिल के दौरे से मरे! इसी तरह 110500 लोगों ने फेफड़े की बीमारी के चलते अपने प्राण त्याग दिए, तो 26330 लोगों की मौत फेफड़ों के कैंसर से हुई। इतने दुर्भाग्यपूर्ण नजारे देखने के बाद भी प्रदूषण पर हमारा दोहरा मापदंड जारी रहता है, तो फिर हमारा मालिक भगवान ही है! कहने को तो कई तरह की कोशिशें देश में प्रदूषण रोकने के नाम पर की जाती हैं, किंतु हम देख सकते हैं कि अभी तक कोई भी व्यवस्था कुछ खास कारगर नहीं हुई है। ऐसे में हमें प्राइवेट गाड़ियों को स्वेच्छा से छोड़कर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करना पड़े अथवा फसलों को जलाना ना पड़े, वह सभी उपाय अवश्य करेंगे। इसके साथ कुछ सामान्य उपाय भी आजमाये जा सकते हैं, जैसे ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए घर में टीवी, संगीत इत्यादि की आवाज कम रखना, अनावश्यक हॉर्न नहीं बजाना, लाउडस्पीकर का कम प्रयोग करना इत्यादि उपाय शामिल हो सकते हैं, तो जल-प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या बन चुका है। इससे बचने के लिए नालों, तालाबों और नदियों में गंदगी न करना और पानी बर्बाद न करना शामिल हो सकता है, तो रासायनिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए जैविक खाद का अधिकाधिक प्रयोग, प्लास्टिक की जगह कागज, पॉलिस्टर की जगह सूती कपड़े या जूट आदि का इस्तेमाल करना और प्लास्टिक की थैलियां कम से कम प्रयोग करना शामिल हों सकता है।इसके साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाना हमारे लिए अमृत हो सकता है, ताकि धरती की हरियाली बनी रहे और फैल रहे प्रदूषण को कम करने में सहायता मिल सके। उम्मीद की जानी चाहिए कि हर बार की तरह मुद्दा उठाकर, हम भूल नहीं जाएँ और सरकार के साथ-साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी यथासंभव उपायों को आजमाएंगे, ताकि हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां प्रदूषण-रहित धरती पर अपनी स्वस्थ जीवनशैली विकसित कर सकें। –प्रेम शर्मा