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हिंदी फिल्मो की पहली सफल महिला हास्य कलाकार ‘टुनटुन’ का असली नाम ‘उमादेवी खत्री’ था। उमा देवी का जन्म 1923 में उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के पास एक छोटे से गाँव में पंजाबी ग्रामीण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता और भाई की हत्या जमीन के विवाद के लिए कर दी गई थी। उमा देवी को दिल्ली में अपने चाचा के पास सिर्फ दो जून की रोटी के लिए उन्हें जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती तंग आकर वो बम्बई आ गई और संघर्ष किया।

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फिल्मो में बतौर गयिका अपना कॅरियर शुरू करने वाली उमा देवी को गायन के क्षेत्र में पहला ब्रेक नौशाद साहेब ने दिया था। उस समय नूरजहाँ, राजकुमारी, खुर्शीद बानो और ज़ोहराबाई अंबालेवाली जैसी के दिग्गजों के बीच खुद अपने लिए जगह बनाई। इनमे फिल्म दर्द (1947) में गाया मशहूर ”अफसाना लिख रही हूँ दिले बेक़रार का” बेहद लोकप्रिय हुआ था। दिल्ली के एक सज्जन इनके इस गीत से इतना मंत्रमुग्ध हुए की कि उन्होंने उमा देवी से शादी ही कर ली जिनका का नाम मोहन था।

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उमा देवी के नाम से कई पुरानी फिल्मो में लगभग 50 के करीब गीत गाये है महबूब खान की ‘अनोखी अदा (1948)’ एस.एस. वासन की’ चंद्रलेखा (1948)’ जैसी कुछ फिल्मो में भी उन्होंने पाश्व गायन किया लेकिन बात नहीं बनी। शादी के बाद घर की जिम्मेदारियों के निर्वाहन के लिए उन्होंने अभिनय की और रुख लिया उनको स्क्रीन नेम ‘टुनटुन ‘ नौशाद साहेब की ही देन है।

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फिल्म बाबुल (1950 ) के दौरान ही उनका नाम टुनटुन हुआ हास्य फिल्मो में उनका ये नाम वरदान सिद्ध हुआ जो काम वो उमा देवी बनकर न सकी वो कमी टुनटुन ने पूरी कर दी परदे पर उनकी एंट्री के साथ ही जम कर ठहाके लगते उनकी लोकप्रियता के कारण, टुनटुन नाम भारत में मोटी महिलाओं का पर्याय बन गया है जो आज तक है।

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करीब दो सौ फिल्मो में अभिनय कर चुकी टुनटुन में अपने समय के लगभग सभी नामचीन अभिनेताओं के साथ काम किया और एक अलग मुकाम हासिल किया। आगे जाकर मनोरमा, इंद्रा बंसल, ललिता कुमारी, प्रीति गांगुली, बेबी मारुती जैसी कुछ महिला कलाकारों ने टुनटुन के नक़्शे कदम पर चलते हुए प्रयास किये लेकिन उन्हें टुनटुन जैसी ख्याति नहीं मिली आज 17 वर्ष बाद भी हिंदी फिल्मो में टुनटुन का कोई विकल्प नहीं महिला हास्य कलाकरो की लिस्ट में वो आज भी अव्वल नम्बर पर ही है।