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Mohd Kamran

ऑल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसिएशन, #आईना के प्रदेश अध्यक्ष नजम हसन Najam Ahasan और उनके सहयोगी जनाब  #फिरोज साहब ने कोरोना आपदा के इस काल में कुछ चुनिंदा साथीयों के सम्मान में एक महफिल सजाकर उनको सम्मानित करने का फैसला किया।

Dr. Mohd Kamran

सोशल डिस्टनसिंग और जगह के चयन की वजह से कई साथी छूट गए जिसका सभी को अफसोस रहा लेकिन हालात को देखते हुए ये ज़रूरी भी था। थर्मल स्कैनिंग और सैनिटिज़ेशन का माकूल इंतेज़ाम था, लेकिन इस महफ़िल में न तो कोई मंच था, न कोई प्रवक्ता, न मुख्य वक्ता, न प्रशस्ति पत्र थे और न ही कोई मोमेंटो हालांकि इंतज़ाम शाही था, ऐसा शाही इंतज़ाम जहां न तो हाथी थे, न घोड़े थे, न कोई दरों दीवार और न ही फानूस था, झाड़ था, दरख़्त था, खुला आसमान और दस्तरखान था, न कोई वज़ीर था, न बादशाह था सभी आवाम के वो चहेते प्यादे थे जिन्होंने कोरोना काल मे अपने कलम से कमाल दिखा कर इंसानियत को कोरोना से लड़ने का पाठ पढ़ाया था।

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अपनी मेहनत से, अपने वजूद से घर मे lockdown न होकर सड़कों पर, मज़लूमों के दरवाजों पर जाकर इंसानियत को बचाने में कुदरत का साथ निभाया था,, ऐसे लोगों का सम्मान किया जाना था जो लगातार 95 दिनों की पारी खेल कर कोरोना से भयभीत न होकर रात दिन इंसानियत को बचाने में अपना शतक पूरा करने जा रहे हो, जिनको हम सबने किसी मज़दूर की प्यास बुझाते, किसी मज़लूम की भूख मिटाते तो किसी ज़रूरतमंद को कपड़े और चप्पल पहनाता देखा हो, रमज़ान के दिनों में भूखे प्यासे होकर तपती धूप में दूसरों को खाना खिलाते देखा हों, इंसान क्या जानवरों से भी मोहब्बत करते देखा हों।

एक तरफ कोरोना के डर से लोग घरों मे कैद हो गए थे, उनकी इंसानियत भी उनके साथ घरों की चारदीवारी में कैद हो गयी थी, पड़ोसी की बीमारी नज़र नही आती थी वही हमने इन सबको खून देकर बीमारों को नई जिंदगी देते देखा है, अली हो या बजरंगबली हर जगह इस टीम लखनऊ को हाथ जोड़े देखा है, दिन भंडारे का हो या रोज़ा अफ्तार का हाथों में भोजन सामग्री लेकर हर गरीब की मदद करते देखा है, 35 साल के Kudrat Khan का वो जज़्बा देखा जिसने एक हाथ से रक्त दान किया वहीं दूसरे हाथ से चूल्हा जलाकर गरीबों, ज़रूरतमंदों के लिए खाना बनाते और लोगों को खाना खिलाते देखा है, भाई क़ुदरत ने अगर अपनी 35 साल की ज़िंदगी मे 44 बार रक्त दान किया है तो भाई #मुर्तुज़ा अली कही पीछे नही है, खून में घुल रही शराब से लोगों की ज़िन्दगी को बचाते देखा है, शराबबंदी के अपने आंदोलन में सरकारी तंत्र और शराब माफियाओं से लड़ते देखा है, आपदा कोरोना की हो या आपदा बाढ़ की, बात उत्तर प्रदेश की हो या केरल की, भाई मुर्तुज़ा को इंसानियत बचाते सभी इंसानों ने देखा है, हर ज़रूरतमंदों को रोटी, कपड़ा, इलाज मुहैय्या कराते देखा है।

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अब्दुल वहीद Abdul Waheed#ज़ुबैर , #तौसीफ़ जैसे कलमकारों का क्या कहना, उनके हौसलें को बड़ी बड़ी कलम के दम भरने वालों ने भी गंगा जमुनी तहजीब के सिरमौर से नवाज़ा है, और उनके सम्मान में मोती जैसे अल्फाजों को पिरोया है, और Mohd Ather Raza साहब की शख्सियत का क्या कहना, वो न हों तो बात नहीं बनती जैसे तस्वीर न हो तो ज़िन्दगी का कोई पल यादगार नहीं बनता, कोई भी खबर कभी जानदार नहीं बनती, आंधी हो या तूफ़ान, कोरोना हो या प्रवासी मज़दूर हर जगह है अतहर का कैमरा मददगार, तस्वीर बनती है और जिस पर #परवेज़ भाई की कलम चलती है तो तमाम तंज़ीम भी जागरूक होती है, ऐसे है ये मेहमान कमाल।

ऐसे ख़ास जो आवाम के लिए प्यादे बन कर काम करते हों उनको कुछ पलों की बादशाहत का अहसास कराने के लिए आईना संगठन के साथीयों ने उनके सम्मान में एक ऐसा दस्तरखान बिछाने की कोशिश की है, जहां मज़लूमों, मज़दूरों, बेहाल, बीमारों, ज़रूरतमंदों के लिए एक मामूली प्यादे के रूप में काम करने वालों को सम्मान दिया जा सके. दस्तरखान पर जब फलों का राजा आम होगा, खुला आसमान होगा तो इंसान के लिए इससे बड़ी कोई बादशाहत और कोई नहीं हो सकती, ऊपर खुदा नीचे इंसान, न कोई तामझाम, न कोई दरोदीवार, बस खुला आसमान और सब भाइयों का साथ, मोहब्बत का एहसास, ताज़गी भरी हवा और आम के साथ शाही पकवान और कामरान का साथ।